मंगलवार, 1 अक्तूबर 2019

वर्तमान जीवन में आधुनिकीकरण एवं सोशल मीडिया का का प्रभाव

                     वर्तमान समय में यह बड़े दुर्भाग्य की बात है कि लोग अभिव्यक्ति की आजादी को लेकर के स्वतंत्रता की सारी हदें पार करते चले जा रहे हैं चाहे देश के प्रधानमंत्री को चाहे देश के मुख्यमंत्री को चाहे विपक्ष के किसी नेता को चाहे किसी की राजनीतिक दल के किसी भी नेता को अपमानित करके और खुद को अभिव्यक्ति की आजादी के स्वतंत्र पक्ष के रूप में प्रस्तुत करते हैं परंतु यह कहां तक उचित है किसी का भी अपमान किया जाना उचित नहीं है लेकिन वर्तमान में आप देखेंगे विभिन्न प्रकार के असामाजिक तत्वों के द्वारा अलग अलग मायावी रूप में वीडियो बनाए जाते हैं जिनको समाज में एक गलत असर के रूप में देखा जा रहा है समाज उसे स्वीकार करता है मांग लेता है परंतु उसने वास्तविकता नहीं होती है और हमारे समाज की एक सबसे बड़ी कमी है कि वह कोई भी चीज को देखता है और उसको तुरंत स्वीकार कर लेता है उसे अपने मस्तिष्क के द्वारा तनिक भी यह विचार विमर्श नहीं करता कि उक्त वीडियो प्रकरण कैसा है यह वास्तव में सही है या गलत है इसका निर्धारण स्वविवेक से नगर की छवि चित्र और वीडियो में दिखाई गई बातों को ही सही मान लेता है परंतु या कतई उचित नहीं है यह हमारे आने वाली पीढ़ी हमारे समाज के लिए अत्यंत घातक है हमें इस घातक समस्या से लड़ने के लिए तैयार होना होगा अन्यथा हम जीवन के ऐसे दौर में प्रवेश करते चले जा रहे हैं जहां व्यक्ति की आजादी के रूप में किसी के भी सम्मान को ठेस पहुंचाई जा सकती हैं           उक्त प्रसंग को उदाहरण के तौर पर देखें कोई एक राजनीतिक दल का कार्य करता है जो राजनीतिक दल के सम्मान में अन्य दूसरे राजनीतिक दल के नेताओं के संदर्भ में ऐसी ऐसी टिप्पणियां करता रहता है जो कि कतई सही नहीं होती है यह जानते हुए भी परंतु दूसरे दल को या दूसरे दल के नेता को नीचे दिखाने के लिए समाज में गलत राय बनाने के लिए इस तरीके की अभद्र टिप्पणियां की जाती हैं और बचाव के लिए आजादी का सहारा लिया जाता है क्या आजादी ज्यादा है कि किसी के मन को आहत करने की छूट दे दी जाए नहीं ऐसा नहीं होना चाहिए हमारी सरकारों को और हमारे समाज को भी मिल कर के कुछ ऐसी व्यवस्था बनानी चाहिए कि व्यक्ति की आजादी पर थोड़ा सा नियंत्रण हो

 आज हम आजाद भारत के नागरिक हैं परंतु आजादी का वास्तविक मतलब दम होता है जबकि आजाद भारत के सभी हिस्से सही तरीके से कार्य करें और एक दूसरे को दिखाओ दिखाने की आवश्यकता ना हो वर्तमान समय में इस मानसिकता से ग्रसित हैं कि जो भी करते हैं तुरंत एक फोटो खींचो स्टेटस अपडेट करो तुरंत ट्विटर पर डालो चाहे वह सरकार का हो या समाज का अंग है जरा सा भी कहीं कोई गलती होती है तो उसे समाज के लोग तुरंत फोटो खींचो तुरंत सरकार को लिखो और वह भी सोशल मीडिया के माध्यम से या परंपरागत तरीके से जो भी विधि तरीका है किसी भी चीज की शिकायत करने का उस तरीके का उपयोग किया जाना उचित नहीं है हर बात को सोशल मीडिया पर लाया जाना कहां तक उचित है और दूसरी चीज अधिकारियों के द्वारा विभिन्न प्रकार की बैठक विभिन्न प्रकार के कार्यक्रमों को सोशल मीडिया पर प्रकाशित करके यह दिखाने का प्रयास किया जाता है कि जिलाधिकारी पुलिस अधीक्षक के द्वारा अत्यंत सराहनीय कार्य से कष्ट दूर हो गए हैं ऐसा तो नहीं हो सकता है इतने पढ़े लिखे समझदार अधिकारी लोग मीडिया के माध्यम से दिखाने का प्रयास करते हैं अखबार मीडिया के हर एक जगह पर सिर्फ और सिर्फ एक ही चीज है वह है दिखावा हम दिखावे की दुनिया में बहुत ही आगे बढ़ते चले जा रहे हैं हम अगर अन्य देशों से तुलना करें तो पैसों में आज इतनी आगे बढ़ चुकी है कि हम उसके आगे बहुत ही बने हैं आज भी अगर हमें किसी भी चीज की आवश्यकता होती है खास करके इलेक्ट्रॉनिक्स तो हम विदेशों पर ही निर्भर हैं हमें हमारे देश में इस तरीके का दोषारोपण करने से अच्छा है कि तकनीकी के विकास की तरफ अग्रसर हूं उसमें खुद को अपने समाज को आगे लेकर जाएं आज भी हमारे समाज में विभिन्न प्रकार की समस्याएं हैं इन समस्याओं से लड़ने के लिए हम अपने आने वाली पीढ़ी को तैयार करें कि हम अपने छोटे-छोटे उस काम को सोशल मीडिया में पोस्ट करते रहें हम जैसे हजारों लोग कर रहे होंगे और उसको पोस्ट कर रहे हैं हमें इस मानसिकता से दूर निकलने की आवश्यकता है हमें विज्ञान तकनीक एवं अध्यात्म को विकसित करने की आवश्यकता है अध्यात्म जिसके ऊपर कभी भारत विश्व गुरु रहा है जिसमें वर्तमान समय में भारत दर्द हो रहा है बहुत ही पीछे है ऐसा महसूस होता है क्योंकि आज भी हम कुछ भी आवश्यकता की मशीनरी है बाहर से ही खरीदते हैं अपने आप इस तरीके की तकनीकों का अभाव

 क्या हमारा समाज आज इस दिशा में भागता चला जा रहा है भागता सुना जा रहा है क्या समाज के लिए वही सबसे बेहतरीन दिशा है हमारे देश के सभी नागरिकों को अपने अधिकार तो याद रहते हैं परंतु अपने कर्तव्य नहीं अपने कर्तव्य का निर्वहन करना तो दूर की बात है अपनी संस्कृति ही भूल रहे हैं लोग इस सोशल मीडिया के जमाने में सिर्फ दो चीजें बेची हैं एक कि पैसा कैसे आएगा कमाई कैसे होगी और दूसरा कि उस पैसे को हम कैसे खर्च करें कि लोग देख सकें कोई भी चीज़ में नहीं है कि हम हमें हमारे समाज में संस्कार और संस्कृति कैसे जीवित रहेगी और उस संस्कार और संस्कृति से हमारी आने वाली पीढ़ी कैसे सही हो पाएगी इसकी किसी को ना तो भी चिंता है और ना ही कोई इस पर चिंतन करना चाहता है वर्तमान समय की भागदौड़ भरी जिंदगी में किसी के पास इतना भी वक्त नहीं है कि वह अपने अपनों का हाल चाल पूछ सकें परंतु हम अपनी जिंदगी में अपनी ही जिंदगी से अपनों से इतने दूर होते चले जा रहे हैं कि हम आपस में पास रहते हुए हाथ में एक मोबाइल और उसी पर पूरी जिंदगी निर्भर जीवन का हर एक काम जीवन का हर एक काम हमारा जो है वह इसी मोबाइल पर निर्भर हो गया है और सिर्फ और सिर्फ मशीनों पर निर्भर होते हुए चले जा रहे हैं और तरीके से श्रम करने की मानसिकता तो समाज में रही ही नहीं है हर व्यक्ति चाहता है कि हम कोई भी काम हो मशीनी तरीके से करें परंतु हमें कुछ ऐसे भी तरीके अपनाने होंगे जिसमें मशीनों के साथ साथ हम बहुत ही शर्म भी कर सके और ऊर्जा की बचत हो सके और हमारे समाज का विकास हो सके है इसके अतिरिक्त एवं बिजली उपयोग में लाई जाती है विकास हो पाएगा एवं हमारे शरीर के विकास के साथ में रोग और बीमारियां दूर भागेगी और उससे उत्पन्न ऊर्जा का हमारे समाज में उपयोग होगा जिससे कि रोते हैं उदाहरण के तौर पर यदि हम हैंडपंप से 500 लीटर पानी प्रतिमा भरते हैं तो हम यह मानकर चलते हैं कि हमने एक टंकी पानी भरने को खर्च की हुई बिजली की बचत की है और अगर इतनी ही बिजली की बचत की इतनी बिजली पैदा होने में जितना प्रदूषण पैदा होता है उतने प्रदूषण को कम किया है सिर्फ एक व्यक्ति के आंकड़ा है परंतु समाज के सभी लोग ऐसा करें तो यह आंकड़ा बढ़ाया जा सकता है और प्रदूषण के स्तर को कम किया जा सकता है हमें अपने दैनिक जीवन में सामान्य उपयोग के लिए चलने फिरने हेतु धुआं रहित वाहनों का उपयोग करना चाहिए एवं डीजल पेट्रोल चीजों के जलने से पैदा होने वाली खतरनाक से बचना चाहिए


          में मैं यह नहीं कहता कि मुझे आदिम जमाने में ही जीना चाहिए परंतु अपनी संस्कृति को ना बोल करके हमें संस्कृति विज्ञान तकनीकी एवं संवेग का सामंजस्य बनाए रखने की आवश्यकता है विगत 10 वर्षों में जिस तरीके से  तकनीकी में विकास हुआ है और इसने हमारी जीवनशैली को बदल कर के रख दिया है उससे भविष्य में शरीर में विभिन्न प्रकार की अन्य नई बीमारियों की जन्म होने की संभावना पाई जाती है उदाहरण के तौर पर मोबाइल जैसी तकनीक से होने वाला विकरण शरीर के लिए घातक हो सकता है मोबाइल के प्रति एकाग्रता मस्तिष्क के लिए घातक हो सकती है मोबाइल का दुरुपयोग वाहन चलाते समय जीवन के लिए घातक हो सकता है एवं हर चीज के लिए प्रत्येक चीज के लिए मोबाइल पर निर्भर हो जाना पूरी जीवन शैली को नियंत्रित करता है प्रातः उठकर के भ्रमण करने का कार्य ना होकर के प्रात उठकर के लोग इंटरनेट पर भ्रमण करते हैं जिससे शारीरिक श्रम नहीं होता है और शारीरिक से हमारी जीवनशैली में बड़ा ही अप्रत्याशित परिवर्तन होता है जो भविष्य में एक बड़ी बीमारी के रूप में सामने आएगा और उस समय हम लोग लाचार होंगे इसलिए आ सकता है अभी से सचेत होने की एवं सचिव हो करके अपनी जीवनशैली को सुधारने की हमें जुड़ा रहने की जरूरत है हमें अपना मोबाइल का उपयोग करना चाहिए परंतु किसी चीज का आवश्यकता से अधिक उपयोग ना हो आवश्यकता से अधिक घातक हो सकती हैं

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