जय माता दी इस ब्लॉग को पढ़ने वाले सभी भाइयों एवं बहनों को सादर प्रणाम नवरात्र के इस पावन पर्व पर आप सभी को नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं माता रानी आपको एवं आपके परिवार को सुख एवं शांति प्रदान करें
हम जैसे जैसे आधुनिक समाज में जीते जा रहे हैं वैसे वैसे ही आधुनिकता का असर बढ़ता चला जा रहा है हम अपनी पुरानी जीवनशैली को भूल कर के वर्तमान जीवन शैली इस तरीके से रम गए हैं कि ना तो हमें अपनी मातृभाषा का ज्ञान है ना हमारी पुरानी जीवन शैली जो कि हमारे पूर्वजों की अत्यंत गाड़ी कमाई थी आज अगर किसी को तनिक भी स्वास्थ्य संबंधी समस्या होती है तो वह प्रयास करता है कि बड़े से बड़े डॉक्टर से इसका इलाज कराया जाए जबकि पुराने समय में छोटी-मोटी समस्याओं के लिए छोटी मोटी कहां होते हैं काम आ जाती थी और वह समस्याएं समाप्त हो जाती आज हम लोग समाचार एवं गूगल से मिली हुई खबरों को एकदम सटीक और विश्वसनीय समझ लेने की भूल करते हैं हम यह देखते हैं कि हमारे सोशल मीडिया पर किस तरीके ट्रेन है और उसी के अनुरूप हम अपनी जीवनशैली को प्रारंभ कर देते हैं कतई उचित नहीं है प्रातः 4:00 बजे उठकर के समाचार से निवृत्त होकर अपनी दैनिक दिनचर्या में व्यायाम दातुन जलपान विद्यार्थी जे 600 तक जाती थी परंतु अब की जीवन शैली में 8:00 बजे सो कर उठने वाले लोग आधुनिकता से ग्रस्त हैं और सबसे पहले चाय पीते हैं जो की अधिकता का प्रतीक मानी गई है वास्तव में चाय भी हमारे समाज के लिए एवं मानव जीवन के लिए दोनों के लिए हितकर नहीं है फिर भी लोग उपयोग कर रहे हैं हमें अपने समाज में ऐसी शिक्षा एवं संस्कृति प्रदान करनी होगी जिससे पेट से बैठकर के अच्छे ढंग से पढ़ाई कर सकें और उस पढ़ाई के अनुरूप अपनी जीवनशैली को वितरित कर सकें हमें आधुनिकता के दौर से अपना पीछा छुड़ाना होगा ताकि हमारी आने वाली पीढ़ी हमारे समाज में वर्तमान में जो बच्चे हैं वह और अधिक स्वतंत्र महसूस करें और अधिक स्वच्छंद महसूस करें स्वच्छता से ही तन मन को मजबूती मिलती है यदि बच्चे को दीवारों के दायरे में बांधकर रख दिया जाएगा वह किसी भी प्रकार के इसके लिए कभी भी तैयार नहीं हो सकता है
हम जैसे जैसे आधुनिक समाज में जीते जा रहे हैं वैसे वैसे ही आधुनिकता का असर बढ़ता चला जा रहा है हम अपनी पुरानी जीवनशैली को भूल कर के वर्तमान जीवन शैली इस तरीके से रम गए हैं कि ना तो हमें अपनी मातृभाषा का ज्ञान है ना हमारी पुरानी जीवन शैली जो कि हमारे पूर्वजों की अत्यंत गाड़ी कमाई थी आज अगर किसी को तनिक भी स्वास्थ्य संबंधी समस्या होती है तो वह प्रयास करता है कि बड़े से बड़े डॉक्टर से इसका इलाज कराया जाए जबकि पुराने समय में छोटी-मोटी समस्याओं के लिए छोटी मोटी कहां होते हैं काम आ जाती थी और वह समस्याएं समाप्त हो जाती आज हम लोग समाचार एवं गूगल से मिली हुई खबरों को एकदम सटीक और विश्वसनीय समझ लेने की भूल करते हैं हम यह देखते हैं कि हमारे सोशल मीडिया पर किस तरीके ट्रेन है और उसी के अनुरूप हम अपनी जीवनशैली को प्रारंभ कर देते हैं कतई उचित नहीं है प्रातः 4:00 बजे उठकर के समाचार से निवृत्त होकर अपनी दैनिक दिनचर्या में व्यायाम दातुन जलपान विद्यार्थी जे 600 तक जाती थी परंतु अब की जीवन शैली में 8:00 बजे सो कर उठने वाले लोग आधुनिकता से ग्रस्त हैं और सबसे पहले चाय पीते हैं जो की अधिकता का प्रतीक मानी गई है वास्तव में चाय भी हमारे समाज के लिए एवं मानव जीवन के लिए दोनों के लिए हितकर नहीं है फिर भी लोग उपयोग कर रहे हैं हमें अपने समाज में ऐसी शिक्षा एवं संस्कृति प्रदान करनी होगी जिससे पेट से बैठकर के अच्छे ढंग से पढ़ाई कर सकें और उस पढ़ाई के अनुरूप अपनी जीवनशैली को वितरित कर सकें हमें आधुनिकता के दौर से अपना पीछा छुड़ाना होगा ताकि हमारी आने वाली पीढ़ी हमारे समाज में वर्तमान में जो बच्चे हैं वह और अधिक स्वतंत्र महसूस करें और अधिक स्वच्छंद महसूस करें स्वच्छता से ही तन मन को मजबूती मिलती है यदि बच्चे को दीवारों के दायरे में बांधकर रख दिया जाएगा वह किसी भी प्रकार के इसके लिए कभी भी तैयार नहीं हो सकता है
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